(नागपत्री एक रहस्य-39)
गुरुजी सुलेखा को उस खिलौने की दुकान से उठा कर लेकर अपनें साथ आश्रम लेकर आ गए थे, जब सुलेखा की उम्र महज दो वर्ष की थी, वह धीरे-धीरे सब की लाडली हो गई थी।
आश्रम में सब अपनेपन और मिलजुल कर रहते थे, वहां किसी से कभी भी किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता था, और साथ ही साथ इनके लालन-पालन के साथ गुरूजी इनको दूसरी विद्याओं का भी ज्ञान देते थे, ताकि कभी यह बच्चे किसी भी चीज़ में पीछे ना रहे।
समय का चक्र चलते जा रहा था, अब धीरे-धीरे अनाथ आश्रम के सारे बच्चे बड़े हो गए, सब बच्चों में आपसी प्रेम था, और एक दूसरे को वे सब भाई बहन की तरह ही मानते थे ,लेकिन पूर्वक इन सब से थोड़ा हटकर था, वह सुलेखा को कभी बहन की नजर से नहीं देखता था और ना ही उसने सुलेखा को कभी बहन माना।
जब भी रक्षाबंधन का त्यौहार आता तो पूर्वक कभी भी अनाथ आश्रम में मौजूद नहीं रहता था, क्योंकि कहीं सुलेखा उसे राखी ना बांधे यही सोचकर रक्षाबंधन के दिन कभी भी आश्रम में पूर्वक नहीं रहा, क्योंकि वह सुलेखा से बहुत प्रेम करता था।
लेकिन उसे पता थी कि अगर आश्रम में यह बात किसी को भी या गुरु जी को भी पता चली तो किसी को भी यह बात ठीक नहीं लगेगी ,इसलिए उसने यह बात कभी किसी को नहीं बताई।
एक दिन पूर्वक मौका पाते ही सुलेखा से अपने मन की बात कह देता है, तब सुलेखा उसकी बात सुनकर थोड़ी अचंभित होती है, और उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा देती हैं ,
सुलेखा, पूर्वक से कहती है कि मैंने आश्रम में सभी लड़कों को सिर्फ अपने भाई के रूप में ही देखा है, मैं तुमसे फिर कैसे प्रेम कर सकती हूं, तब पूर्वक कहता है कि लेकिन मैंने हमेशा तुमसे ही प्यार किया है और करता रहूंगा, तब भी सुलेखा उसकी बात का कोई जवाब ना देकर वहां से चले जाती है।
जब सुलेखा पूर्वक के प्रेम को ठुकरा देती है तो पूर्वक नाराज होकर जंगल की ओर चला जाता है, उसे भी नहीं पता होता है कि वो कहां चले जा रहा है, वही एक घने जंगल की और उसकी मुलाकात एक तांत्रिक से होती है, तब वह तांत्रिक उसे देख भाप जाता है कि आखिर यह क्या चाहता है??
अच्छा तो आज उसने तुम्हारे प्रेम को ठुकरा दिया है, तब पूर्वक उसकी तरफ गौर से देख कर कहता है कि यह सब तुम्हें कैसे पता और आखिर कौन हो तुम?? और इतने घने जंगल में क्या कर रहे हो इतनी रात??
तब तांत्रिक पूर्वक से कहता है कि मैं सब कुछ जानता हूं, किस को क्या चाहिए?? यह सब भी मुझे पता होता है और तुम्हें क्या चाहिए, यह भी मैं अच्छी तरीके से जान गया हूं, अगर तुझे उसका प्रेम पाना है तो तुझे उसे अपने वश में करना होगा और इसके लिए तुझे मैं एक तांत्रिक विद्या सिखाऊंगा,
यह सुन पूर्वक भी ऐसी विद्या सीखने के लिए झट से तैयार हो जाता है, और उस तांत्रिक को कहता है कि आप मुझे वह विद्या सिखा दो, मैं आपको अपना गुरु बना लूंगा।
तब तांत्रिक उससे कहता है कि इसके लिए तुम्हें एक पशु की बलि देना होगा, तब पूर्वक इस बात के लिए हामी भर देता है अघोरी पूर्वक से कहता है कि तुम्हें बली देने के लिए एक पशु को लाना होगा, तभी हम यह पूजा आरंभ करेंगे।
पूर्वक कहता है कि हां, मैं अपने आश्रम से एक गाय को कल सबकी नजर से छुपा कर ले कर आ जाऊंगा, यह कहते ही पूर्वक आश्रम की और निकल पड़ता हैं।
आश्रम पहुंचते ही उसकी नजर सुलेखा पर पड़ती हैं ,लेकिन सुलेखा उसकी ओर देखती भी नहीं है, वह सुलेखा से बात करने की कोशिश करता है, लेकिन सुलेखा अपने दूसरे कामों में उलझ जाती है।
रात के अंधेरे में सभी को सोता हुआ देख पूर्वक सोचता है कि अब मुझे बिना देरी किए हुए यहां से एक गाय को अपने साथ ले जाना होगा, तभी वह सबके कमरे में जाकर देखता है तो सब सोए हुए रहते हैं, मौका पाते ही वह गौशाला से एक गाय को लेकर जाने लगता है।
गाय की आवाज कहीं ना कहीं सुलेखा के कानों में गूंजने लगती है , और जब वह जाकर देखती है तो एक गाय वहां नहीं दिखती है, तब पूर्वक के कमरे में जाकर देखती है तो पूर्वक भी वह वहां नहीं दिखता है, अब उसे कुछ कुछ समझ में आने लगता है।
सुलेखा, पूर्वक का पीछा करते हुए उस जंगल की ओर चले जाती है, जैसे ही वह तांत्रिक पूजा आरंभ करता है, और वह पशु की बलि देने के लिए होता है तो सुलेखा वहां आ जाती हैं।
सुलेखा उस गाय को धक्का देकर खुद वहां जाती है, और वह शैतानी शक्तियों के बीच आकर वो वार अपने ऊपर ले लेती है,
पूर्वक यह सब देखकर घबरा जाता हैं ।
तब वह तांत्रिक पूर्वक से कहता है कि तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है, हमें पूजा आरंभ करना है, लेकिन
सुलेखा ने जाते-जाते पूर्वक को श्राप दिया कि तुमसे तुम्हारी सारी विद्या छीन ली जाएगी, और तुम भी तड़प तड़प कर मेरे जैसे ही मरोगे और किसी भी निरीह प्राणी की जान तुम कभी ना ले सकोगे,कहते हुए सुलेखा अपने प्राण त्याग देती है।
तब तांत्रिक पूर्वक से कहता है कि तुम इन सब बातों की ओर ध्यान मत दो, तुम तांत्रिक विद्या सीखो, लेकिन गुरु जी से यह सब कहां छिपने वाला था, जब पूर्वक आश्रम की ओर जाता है तो शांत शांत रहता है,लेकिन गुरु जी को सुलेखा के बारे में कुछ नहीं बताता है।
तब गुरुजी पूर्वक से कहते कि पूर्वक सुलेखा कहां है, पूर्वक शांत रहता हैं , गुरूजी की बात का कोई जवाब नही देता हैं।
अब गुरु जी गुस्से में कहते हैं कि सुलेखा कहां है, तब पूर्वक कहता है कि सुलेखा अब इस दुनिया में नहीं रही उसने अपने प्राण त्याग दिए। गुरु जी कहते हैं कि छिपा तो मुझसे कुछ भी नहीं था, लेकिन मैं तुम्हारे मुंह से जानना चाहता था।
क्या किसी का प्रेम पाने के लिए तांत्रिक विद्या सीखी जाती है? अगर मुझे पता होता कि तुम ऐसे हो तो मैं कभी तुम्हें अपना शिष्य नहीं बनाता, और कभी भी तुम्हें मैं दैवीय शक्ति का ज्ञान नहीं देता।
इसका अंजाम तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा अब पूर्वक को गुरुजी कौन सी सजा देंगे??
क्रमशः....